Hindi Translationआचार अनाचार जैसे दो प्रकार हैं।
आचार कहें तो कहूँगा सुनिए:_
सर्वपदार्थ सामने रहे तो उन पदार्थों को शुद्धकर
लिंग को समर्पित करते समय खाने योग्य
शिवमंत्र युक्त होकर प्रसाद ग्राहक बना रहे तो
उसी को प्रसादी, वीर माहेश्वर कहूँगा।
थपकना, छूना, लगना, सब निरोध को
घास का तिनका, दर्पण आदि सर्व व्यवहार में
किसी एक को भोग करने, किसी एक को क्रीड़ा करने
लिंग ही प्राण होने से उस महांत को ही सर्वाचार संपन्न कहूँगा।
ऐसे महात्मा के त्रिविध मुख जानकर करुणापूरित होकर
प्रसाद लेने से पावन कहूँगा।
उसे सिर्फ महानुभाव परम ज्ञान परिपूर्ण कहूँगा।
उसी महात्मा को त्रिजग मालिक कहूँगा गुहेश्वरा।
Translated by: Eswara Sharma M and Govindarao B N
English Translation
Tamil TranslationTranslated by: Smt. Kalyani Venkataraman, Chennai
Telugu Translation
Urdu Translation
ಸ್ಥಲ -
ಶಬ್ದಾರ್ಥಗಳುWritten by: Sri Siddeswara Swamiji, Vijayapura