Hindi Translationप्रथम में वस्तु अनिर्वाच्य बनी हुई थी।
वह अनिर्वाच्य हुई परवस्तु
अपनी लीला से खुद परब्रह्म जैसा नाम हुआ था।
वह नाम पाकर कुल बने थे;
उस कुल से आत्मा जैसा लिंगस्थल बना था।
वह स्थल कुल में आये स्थल कुल जैसे बिना दो खड़ा था।
वह कैसे कहे तो--
वाङ्मन अगोचर हुआ परब्रह्म से हुआ था भाव,
भाव से हुआ था ज्ञान, ज्ञान से हुआ था मन ,
मन से हुई थी बुद्धि, बुद्धि से हुआ था चित् ,
चित् से हुआ था अहंकार।
ऐसे- अहंकार, चित्, बुद्धि, मन, ज्ञान, भाव कहे छ: हुए।
ये छ: बिना बिगड़े वाङ्मन को अगोचर हुआ परब्रह्म मत बनना ।
इसे बिगाड़ने छ: स्थल--
वे कौन से कहें तो—
अहंकार नाश बनेगा तो भक्तस्थल,
चित्तकागुण बिगड़े तो माहेश्वरस्थल,
बुद्धि का गुण बिगड़े तो प्रसादी स्थल।
मनोगुण मिठेगा तो प्रणालिंग स्थल।
जीवगुण मिले तो शरण स्थल।
भाव निर्भाव बनेग तो ऐक्य स्थल।
ऐसे षट्स्थल बने वाङ्मन को अगोचर हुआ ब्रह्म ही आत्मा।
उस आत्मा से आकाश पैदा हुआ था,
उस आकाश से वायु पैदा हुई थी।
उस वायु से अग्नि पैदा हुई थी।
उस अग्नि से जल पैदा हुआ था।
उस जल से पृथ्वी पैदा हुई थी।
ऐसे कुलस्थल बने स्थलकुल हुए विवर कैसे कहे तो --
पृथ्वी जल में छिपी, जल अग्नि में छिपे
अग्नि वायु में छिपी, वायु आकाश में छिपी,
आकाश आत्मा में छिपा था, आत्मा परशिव में छिपी थी।
ऐसे षड़ंग छिपे रीति कैसे कहें तो--
"पृथ्वी भवेत् जले, जले मग्ना जलं ग्रस्तं महाग्निना।
वायो रस्तमितं तेजों व्योम्नि वातो विलीयते ।
व्योमाऽत्मनि विलीनं स्यात् आत्मा परशिवे पदे"---
कहने के अनुसार -
आत्मा परब्रह्म में छीपी खड़ी थी गुहेश्वरा।
Translated by: Eswara Sharma M and Govindarao B N
English Translation
Tamil TranslationTranslated by: Smt. Kalyani Venkataraman, Chennai
Telugu Translation
Urdu Translation
ಸ್ಥಲ -
ಶಬ್ದಾರ್ಥಗಳುWritten by: Sri Siddeswara Swamiji, Vijayapura