Hindi Translationआदि अनादि जैसे अंतरात्मा में बिना जाने,
आदि दैव जैसे सिर्फ बहिरंग रीति उपयोग कर,
अन्य दैवों की आराधना कर बिगड़ रहे हैं देखा।
उसमें क्या गलती, बच्चों को अपनी माता ही दैव।
माता को अपना पुरुष ही दैव, पुरुष को अपना प्रभु ही दैव।
प्रभु कोअपना प्रधान ही दैव, प्रधान को अपना राजा ही दैव।
राजा को अपनी लक्ष्मी ही दैव ,लक्ष्मी को अपना विष्णु ही दैव।
विष्णु को अपना रुद्र ही दैव, उस रुद्र को अपना ईश्वर ही दैव।
ईश्वर को अपना सदाशिव ही दैव ,सदाशिव को अपना सर्वगत शिव ही दैव
सर्वगत शिव को आकाश महिपति जैसे महालिंग को
आदि दैव रहेतो कहिए; नहीं तो चुप रहिए।
इस कारण षड्दर्शन के चराचर ही सब
अपनी अपनी इच्छा काम्य देने को
वर रहे देव समझ माँग रहे हैं।
उस में गलत क्या उनके योग्य,
वर देने को सत्य रहा हुआ है।
फिरभी क्या, प्राण का परिणाम देना न जानते
उनके हाथ से आराधित सब दैव।
पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश ,जैसे छ: की परवाह में फॅंसे,
विभूति धारण रुद्राक्षी पहने
जब तप होम ने मों को कर
मारण, मोहन ,स्तंभन, उच्छाटना,
अंजनसिद्धि, घुटिकासिद्धि, मंत्रसिद्धि , दूरदृष्टि,
दूर श्रवण, कमल दर्शन, त्रिकाल ज्ञान,
परकाय प्रवेश, जैसे
अष्ट महासिद्धियों को लिंग में वर पाये
अपने से मांगनेवाले को दे, अपने बुजुर्गों को नमस्कार कर
अपने से छोटे को दैव कहते हैं।
दूसरे दिन दैव कह सकते?
दुष्टों को सत्य बने कह सकते ?
असत्य में मिठे को भक्त कह सकते?
बहुरूपी कपटियों को नित्य कह सकते?
रोज-रोज मरमर कर पैदा होनेवालों को
वह कैसे कहे तो_
ब्रह्म के एकपहर को एक इंद्र मरता,
विष्णु के एक पहर को एक ब्रह्म मरता,
रुद्र के एक पहर को एक विष्णु मरता,
ईश्वर के एक पहर को एक रुद्र मरता,
सदाशिव के एक पहर को एक ईश्वर मरता,
सर्वगत के एक पहर को एक सदाशिव मरता,
लिंग शरणों के एक निमिष को एक सर्वगत मरता।
लिंग शरणों को मृत्यु हो तो कहिए?
नहीं तो चुप रहिए।
ऐसे महालिंग के शरणों को बिना जाने
षड्देवता मुख्य हुए मनु मुनि, देव, दानव,
मानव सब टहलते तड़प रहे हैं।
वह कैसे कहे तो_
ब्रह्म वेद में ढूँढेगा।
विष्णु पूजा में ढूँढेगा।
रुद्र जप में ढूँढेगा।
ईश्वर नित्य नेम में ढूँढेगा।
सदाशिव नित्य उपचार में ढूँढेगा।
सर्वगत शून्य में ढूँढेगा।
गौरी तप में ढूँढेगी, गंगा क्रोध में ढूँढेगी।
चंद्र सूर्य चाल में ढूँढेंगे।
इंद्र आदि अष्टदिक्पालक आगम में ढूँढेंगे।
सप्तमात्रुकाऍं "ऊँपटुस्वाहा" जैसे मंत्र में ढूंढ़ेंगी।
सत्यऋषि, दधीचि, गौतम, वशिष्ट, वाल्मीकि, अगस्त्य,
विश्वामित्र आदि सप्तऋषि गण
तप योग आगम, में ढूँढ़ेंगे।
इन सब को मिले न मिले घन
शुक्ल, शोणित बिना कामी, बिनादेह रुप,
बिना शिर गज, बिना पूँछ सिंह ,बिना नींद निराळ।
ऐसे भेदों के भेदकर देख सके तो ऑंख पर ऑंख है।
फिर उस ऑंख खोल
अमृत काय दृष्टि में देखे तो एक भी नहीं।
हमारे गुहेश्वरलिंग पूरी तरह शून्य निश्चिंत निराळ।
Translated by: Eswara Sharma M and Govindarao B N
English Translation
Tamil TranslationTranslated by: Smt. Kalyani Venkataraman, Chennai
Telugu Translation
Urdu Translation
ಸ್ಥಲ -
ಶಬ್ದಾರ್ಥಗಳುWritten by: Sri Siddeswara Swamiji, Vijayapura