Hindi Translationअय्या दीक्षागुरु, शिक्षागुरु, ज्ञानगुरु जैसे त्रिविध गुरु;
क्रियालिंग, ज्ञानलिंग, भावलिंग जैसे त्रिविध लिंग;
स्वय, चर, पर जैसे त्रिविध जंगम-
इन नौ आचारलिंग में संबंध हैं।
क्रियागम, भवागम, ज्ञानागम जैसे त्रिविध लिंग,
सकाय अकाय, परकाय जैसे त्रिविध गुरु,
धर्माचार, भावाचार, ज्ञानाचार जैसे त्रिविध जंगम।
इन नौ गुरुलिंग में संबंध हैं।
कायानुग्रह, इंद्रियानुग्रह, प्राणानुग्रह जैसे त्रिविध गुरु।
कायार्पित, करणार्पित, भावार्पित जैसे त्रिविध लिंग;
शिष्य, शुश्रूश, संख्या जैसे त्रिविध जंगम-
इन नौ शिवलिंग में संबंध हैं।
ये तीनों स्थल अनादि भक्त का मार्ग क्रियास्वरूप हैं।
जीवात्मा, अंतरात्मा, परमात्मा जैसे त्रिविध लिंग;
निर्देहागम, निर्भावागम, नष्टागम जैसे त्रिविध गुरु।
आदिप्रसादी, अंत्यप्रसादी सेव्यप्रसादी जैसे त्रिविध जंगम,
इन नौ जंगम लिंग में संबंध हैं।
दीक्षापादोदक, शिक्षापादोदक, ज्ञानपादोदक, जैसे त्रिविध लिंग,
क्रियानिष्ट, भावनिष्ट, ज्ञाननिष्ट जैसे त्रिविध गुरु;
इन नौ प्रसाद लिंग में संबंध हैं।
क्रियाप्रकाश, भावप्रकाश, ज्ञानप्रकाश जैसे त्रिविध लिंग
पाया प्रसाद, खडा आहार,
चराचर नास्तिक जैसे त्रिविध गुरु;
भांडस्थल, भाजनस्थल, अंगलेपन जैसे त्रिविध जंगम
इन नौ महालिंग में संबंध हैं।
ये तीनोंस्थल अनादि जंगम से परे क्रिया स्वरूप हैं।
ये दोनों मिलकर चौवन स्थल हुए।आगे बचे
तीन स्थलों में भावाभाव नष्टस्थल ही मूलगुरू स्वरूप बने
अठारह गुरू स्थलों को मिलाकर
क्रियागुरुलिंग जंगम स्वरूप बने
इष्ट महालिंग की अधो पीठिका जैसे आवरण में
स्पर्शनोदक, अवघानोदक, गुरुपादोदक,
आप्यायन प्रसाद, समय प्रसाद, गुरु प्रसाद,
आदि प्रसाद, नित्य प्रसाद बने बिना रुके चल रहा देख
ज्ञान शून्य स्थल ही मूल जंगम स्वरूप बने
अठारह चर स्थलों को मिलाकर
महाज्ञान गुरु लिंग जंगम स्वरूप बने
इष्ट महा लिंग की जलरेखा रही पानी थाली में
परिणामोदक, निर्नामोदक, जंगमपदोदक, नित्योदक
समता प्रसाद, प्रसादी का प्रसाद, जंगम प्रसाद, सद्भाव प्रसाद,
ज्ञान प्रसाद, सेव्य प्रसाद,
शुद्ध प्रसाद, बिना रुके शोभित था देख।
स्वय-पर न ज्ञान स्थल ही मूल लिंग स्वरूप बने
अठा रह लिंग स्थलों को मिलकर
ज्ञान गुरु लिंग जंगम स्वरूप बना
इष्ट महा लिंग के उन्नत गोलक में
आप्यायनोदक, हस्तोदक, लिंगपादोदक,
पंचेद्रीय विरहित प्रसाद,
करण चतुष्टय विरहित प्रसाद, लिंगप्रसाद,
अंत्यप्रसाद, समयप्रसाद, बिना रुके शोभित था देख
ऐसे लिंग जंगम के पदोदक, प्रसाद स्वीकार किये
जंगम भक्त सहज भक्ति ही प्रसाद पादोदक संबंधि
इनसे स्वीकृत पदोदक ही
नेत्र में करुणजल, वाक् में विनयजल, अंतरंग में समता जल
ऐसे त्रिविधोदक ही गाढ बने साकार होकर,
गला घी, गाढा घी बने जैसे
इस्ट महालिंग को त्यागांग बना शुद्ध प्रसाद हुआ है!
प्राणलिंग को भोगांग बना सिद्ध प्रसाद हुआ है।
भावलिंग को योगांग बना प्रसिद्ध प्रसाद हुआ है।
ऐसे त्रिविध प्रसादपादोदक ही
शरण का शुद्ध, प्रसाद ही जिह्वा में शुद्ध प्रसाद हुआ है।
सिद्ध प्रसाद ही पाद में समय प्रसाद हुआ है।
ऐसे शरण स्वरूप बना ज्ञान लिंग जंगम के
तीर्थप्रसाद स्वरूप न जाने
क्रिया जंगमलिंग के तीर्थ प्रसाद को ले सकते हैं।
ज्ञान लिंग जंगम तीर्थ प्रसाद को मत लेना चाहिए
ऐसे अज्ञानियों को मुझे मत दिखाना गुहेश्वरा।
Translated by: Eswara Sharma M and Govindarao B N
English Translation
Tamil TranslationTranslated by: Smt. Kalyani Venkataraman, Chennai
Telugu Translation
Urdu Translation
ಸ್ಥಲ -
ಶಬ್ದಾರ್ಥಗಳುWritten by: Sri Siddeswara Swamiji, Vijayapura