Hindi Translationअय्या, ’विश्वतोचक्षुरुत’ कहने से,
सारा जग नेत्र बने हुए हैं शिव।
सारा जग नेत्र हुए तो, नेत्र में उत्तम मध्यम कनिष्ट
क्यों हुए? ये कैसे हुए कहें तो सुनिए –
नेत्र का नेत्र बने जग नेत्र को प्रकाश हुआ अपने को बिना दिखाये जैसे
श्रीगुरु करुणाकटाक्षा से उदय हुआ
इष्ट महाज्योतिर्लिंग को देखा नेत्र ही लिंग नेत्र है।
वहीं सद्धर्म स्वरुप हुआ उत्तम कहलानेवाला।
अय्या, खग मृग फणि कीडादि नेत्र उभयकर्म में न मिलने से
दृष्टिदोष न होने से वह मध्यम कहलायेगा।
अय्या, इष्टमहा ज्योतिर्लिंग बाह्य बने
पंच महापातक सूतकों में रहने से
अपात्र जीव हुए भवि के नेत्र उभय को अनुकूल होने के कारण
चर्मचक्षु जैसे, अपने को आप जाने गाढांधकार से
मछली जैसे विषनेत्र जैसे
मन्मथ के हाथ में मिले नीलोत्पल बाण जैसे तामसाग्नि जैसे
कुरुप नेत्रेंद्रिय समझ, शिवाचार सद्धर्मियों की निंदा करनेवाली
मह पातक दृष्टि जैसे कहने लगी थी।
इष्टलिंग न रहने के कारण कनिष्ट चक्षु कहलाये देखा अय्या।
इससे सद्भक्त शरण गण अर्चनार्पित द्रव्य न देने से ,
उनके साथ संभाषण दर्शन स्पर्शन किया नहीं देखा।
गुहेश्वर लिंग में सिद्धरामय्या।
Translated by: Eswara Sharma M and Govindarao B N
English Translation
Tamil TranslationTranslated by: Smt. Kalyani Venkataraman, Chennai
Telugu Translation
Urdu Translation
ಸ್ಥಲ -
ಶಬ್ದಾರ್ಥಗಳುWritten by: Sri Siddeswara Swamiji, Vijayapura