Hindi Translationनित्य तृप्त को नैवेद्य की परवाह क्यों ?
सुराळ निराळ को स्नान की परवाह क्यों ?
स्वयं ज्योतिर्मय को दीपाराधना की परवाह क्यों ?
खुशबू सूक्ष्म गंध कपूर गौरव को पुष्प की परवाह क्यों ?
कर्म में मन विश्वास नहीं हो तो अहंकार पीडित,
भक्ति जैसे अनुग्रह रखकर
चांडालादि अठारह जन्म गुजारने से
हथेली से पोंछकर मुक्ति का
मूल शिखि रंध्र से काम जलाकर
शुद्ध स्फटिक स्वयंज्योति को
सुनाल से ‘हं’, ‘क्षं’ जैसे दो अक्षरों को
स्वयानुभाव भक्ति से निर्वाण हुए को मुझे एक बार दिखा दो
श्री गिरि चेन्नमल्लिकार्जुना।
Translated by: Eswara Sharma M and Govindarao B N
English TranslationTranslated by: Dr. Sarojini Shintri
Tamil TranslationTranslated by: Smt. Kalyani Venkataraman, Chennai