Hindi Translationअय्या! आगे मर्त्य लोक के महागण
सद्भक्ति, सदाचार, सत्क्रिया, सम्यज्ञान
आज्ञादीक्षा आदि इक्कीस दीक्षा के विचार,
त्रिविध स्थल- षट्स्थल
दशाविध पादोदक, एकादश प्रसाद, षोडशावरण,
एक सौ आठ रहस्य आदि समस्त रहस्य अर्पित अवधान,
मूल प्रणव आदि महामंत्र,
सर्वाचार संपत्ती का लिंगानुभाव की बोलचाल के विचार
षड्विध शील, षड्विध व्रत, षड्विध नेम के स्थिति कला सन्मार्ग,
ऐसे स्वस्वरूप की स्थिति
निष्कलंक परशिवमूर्ति सद्गुरु लिंग से पाकर
परुष स्पर्श से लोह सोना बनने के बाद फिर न लोहे बनने जैसे
पावनार्थ स्वय-चर-पर-आदि–अंत्य–सेव्यस्थल आदि
षट्स्थल मार्ग पर चलकर भक्त माहेश्वर शरण गण सम पंक्ति में
सुगंध, सुरस, सुरूप, सुस्पर्श-सुशब्द
मधुर, खार, तीखा, खट्टा, कडवा, लवण, पंचामृत
आदि पदार्थों का
पूर्वाश्रय छूटकर महाघनलिंग मुख में
शुद्ध –सिद्ध- प्रसिद्ध –रुप-रुचि –तृप्ति के महामंत्र ध्यान से समर्पित कर
उस लिंग के गर्भ में स्थित निरंजन जंगम से महाप्रसाद पाकर,
खुद प्राणलिंग समझ, दो मिठाकर,
परशिव लिंग लीला से भोग करने समपंक्ति के बीच में
कोई गण हो सही, प्रसाद ह में ज्यादा हुआ कहें
त्रिविध दीक्षाहीन हुआ उपाधि लिंग भक्त को
प्यार से शरण में आऒ कहकर देनेवाला एक अयोग्य।
अथवा गुरु मार्ग के आचरण बिना जाने दिये तो,
ऎसे लिया भक्त सत्य से वह प्रसाद ही
प्राण हुआ देख
आगे षट्स्थल लिंगानुभाव सद्भक्त शरण गण
दिये हुए को इस तरह नहीं देना आज्ञाकर,
लिए हुए को दुर्गुण दूरकर
वेधा मंत्र क्रिया हस्त मस्त क संयोग आदि
इक्कीस दीक्षा सद्गुरु से करवाकर सदाचार बोधकर,
अष्टावरण को लक्ष्य सर्वांग लिंग में दिखाकर ,
अनादि जंगम प्रसिद्ध प्रसाद पादोदक दे लेना ही
सदाचार सन्मार्ग देख गुहेश्वर लिंग को चेन्नबसवण्णा।
Translated by: Eswara Sharma M and Govindarao B N
English Translation
Tamil TranslationTranslated by: Smt. Kalyani Venkataraman, Chennai
Telugu Translation
Urdu Translation
ಸ್ಥಲ -
ಶಬ್ದಾರ್ಥಗಳುWritten by: Sri Siddeswara Swamiji, Vijayapura