Hindi Translationअय्या, विरक्त विरक्त कहें तो क्या?
सिर्फ विरक्ति की बातें करते विरक्ति सबको कहाँ की है?
हाथ में स्थित पत्र, बगल में ग्रंथ, मुँहकी बात।
पुण्य नहीं –पाप नहीं, कर्म नहीं- धर्म नहीं,
सत्य नहीं-असत्य नहीं कहते बातें करते हैं।
वह कैसे कहें तो -
आँखों की दृष्टि सूखने तक हाथ की उँगली रुकने तक ;
हृदय का काम कम होने तक विरक्ति सबको कहाँ की है ?
जाने विरक्त के हृदय उदक के गड्ढे में
माणिक्य की प्रभा कौन देखे हैं?
देखी आँखों में देखी सब चीजें लिंगार्पित हैं।
उस लिंग को देखे हुऐ को, कर्ण से सुने आगम
पुराण उस लिंग को अर्पित
उस लिंग को देखे हुऐ को जिह्वा में रुचित
वह पदार्थ लिंगार्पित है।
वह कैसे कहें तो -
अंग लिंग एकीभव हो तो
उसको पुण्य नहीं-पाप नहीं;
कर्म नहीं-धर्म नहीं, सत्य नहीं –असत्य नहीं,
वह कैसे कहें तो–
जो आया उसे लिंग को देने से
जो नहीं आया उसे न चाहने से
चाहकर आये को लिंग देने से, न आये को न चाहने से,
अंगनाएँ आकर कामितार्थ से अपने को आलिंगन करे तो
खुद महालिंग का आलिंगन करने से,
उस कामुख दूसरा है, सबआत्मा एक ही है।
उसे संसार पाप पुण्य कहते बातें करते हैं।
वह कैसे कहें तो -
शिव की माता नहीं, भुवन की कीमत नहीं।
तरु गिरि गह्वर को घर नहीं।
लिंग से मिले हुए विरक्त को पुण्य पाप नहीं देखो
चेन्नमल्लिकार्जुना।
Translated by: Eswara Sharma M and Govindarao B N
English TranslationTranslated by: Dr. Sarojini Shintri
Tamil TranslationTranslated by: Smt. Kalyani Venkataraman, Chennai